यूसुफ सूरे की 53वीं आयत में आया है, “मैं अपने आप को पाक नहीं ठहरा सकता, क्योंकि मेरा नफ़्स बहुत ज़्यादा बुराई करने वाला है…” यह कथन किसका है?

प्रश्न विवरण

“(यूसुफ) मैं अपने आप को पाक नहीं ठहरा सकता, क्योंकि मेरी आत्मा, मेरे पालनहार की कृपा और रक्षा के सिवा, बुरी तरह से बुराई का आदेश देती है…” (यूसुफ 12/53)। कुछ अनुवादों में बताया गया है कि व्याख्याकारों का कहना है कि इस आयत में कही गई बात हज़रत यूसुफ की नहीं बल्कि ज़ुलेखा की है। तो क्या इसका अर्थ बदल जाता है? मुझे पूरी तरह समझ नहीं आया। कृपया स्पष्ट करें।

उत्तर

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