जाइद-ए-ज़िना करने वाले साथी को पहले पत्थर से मारने की इच्छा नहीं रखने वाले हमारे पैगंबर ने उससे तौबा करने को कहा था। लेकिन चोर महिला का हाथ काटने का आदेश दिया था। हमें इन दो अलग-अलग घटनाओं की व्याख्या कैसे करनी चाहिए?

प्रश्न विवरण

सहाबा के दौर में एक सहाबी ने ज़िना किया और पैगंबर साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास आकर खुद को पत्थर से मारने की (रज्मि) गुज़ारिश की। पैगंबर साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उससे तौबा करने को कहा। बार-बार आने पर अंत में उन्होंने उसे पत्थर से मारने की इजाज़त दे दी। दूसरी घटना में ख़ालिद बिन वलीद के क़बीले की एक औरत ने चोरी की। उसका हाथ काटना ज़रूरी था। उसके क़बीले के कुछ लोगों ने उसामा बिन ज़ैद को बीच में रखा और उसे पैगंबर साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास भेजा। पैगंबर साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसामा पर नाराज़ हुए और कहा कि उस औरत का हाथ काटा जाना चाहिए। इन दोनों घटनाओं को कैसे समझना चाहिए?

उत्तर

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