हमारे प्रिय भाई,
निसब की मात्रा के बारे में, जो सोने और व्यापारिक वस्तुओं में चालीसवें हिस्से के बराबर होती है, पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और सहाबा के कथन मौजूद हैं।
सोने और चाँदी पर ज़कात की दर 1/40 (एक चालीसवाँ) यानी ढाई प्रतिशत (2.5%) है। जब किसी के पास दो सौ दिरहम की संपत्ति हो और उस पर एक साल बीत जाए, तो उसे पाँच दिरहम ज़कात देना होगा। बीस मिसकल पर आधा दिरहम ज़कात देना होगा।
इस मत के समर्थन में जो प्रमाण है, वह इस विषय में प्रचलित हदीसें हैं। इनमें से एक हदीस पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हज़रत अली (रज़ियाल्लाहु अन्हु) से कही गई यह हदीस है:
“जब तुम्हारे पास दो सौ दिरहम हों और एक साल बीत जाए, तो तुम्हें पाँच दिरहम ज़कात देने होंगे। और जब तक तुम्हारे पास बीस दीनार न हों, तब तक तुम्हें सोने के पैसे से कुछ भी नहीं देना होगा। जब तुम्हारे पास बीस दीनार हों और एक साल बीत जाए, तो तुम्हें उन बीस दीनारों में से आधा दीनार ज़कात देना होगा।”
(1)
हज़रत पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“सोने पर बीस मिसकल से कम पर ज़कात नहीं है, और चाँदी पर दो सौ दिरहम से कम पर ज़कात नहीं है।”
(2)
“हर चालीस दिरहम पर एक दिरहम ज़कात दो। जब तक कि यह दो सौ दिरहम तक नहीं पहुँच जाता, तब तक तुम्हें कुछ भी देने की ज़रूरत नहीं है। जब धन दो सौ दिरहम हो जाए, तो उससे पाँच दिरहम ज़कात देना होगा। इससे अधिक धन पर इसी हिसाब से ज़कात देना होगा।”
(3)
पादटिप्पणियाँ:
1. यह हदीस अबू दाऊद और बेहकी ने बयान की है। नाइलुल अव्तार, IV, 138.
2. इस हदीस को अबू उबैद ने बयान किया है।
3. इस हदीस को दारकुत्नी और अस्रम ने रिवायत किया है। अबू दाऊद ने इसे हज़रत अली से रिवायत किया है। यह हज़रत अली और इब्न उमर से रिवायत की गई है।
(प्रो. डॉ. वहाबे ज़ुहाइली, इस्लामी फ़िक़ह विश्वकोश)
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