क्या ज़रूरत की स्थिति में हराम चीज़ें हलाल हो जाती हैं?

प्रश्न विवरण

मैंने कुरान में पढ़ा है, सूरह बकरा में, कि अगर कोई व्यक्ति बहुत ही मजबूर और मुश्किल में हो तो वह बिना गुनाह किए हराम चीज़ खा सकता है, जैसे कि सूअर का मांस खाना या सरकार द्वारा मनाही की गई कोई चीज़… ऐसे में क्या करना चाहिए? मान लीजिये कोई भूखे मरने की कगार पर है, तो क्या उसे सोचना चाहिए कि मैं सूअर का मांस नहीं खाऊँगा, अगर मुझे भूखे मरना ही है तो मर जाऊँगा, या कुरान एक रास्ता दिखा रहा है, कि यह जायज़ है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करना चाहिए, क्या ऐसा करने से हम क़दर को नकार नहीं रहे हैं?

उत्तर

हमारे प्रिय भाई,

इस विषय का भाग्य से इनकार करने से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई व्यक्ति आवश्यकता की स्थिति में मरने की कगार पर है, तो वह मरने की हद तक नहीं, बल्कि आवश्यकता के अनुसार सूअर का मांस खा सकता है। इसमें कोई पाप नहीं है और न ही भाग्य से इनकार है।

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सलाम और दुआ के साथ…

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