क्या आप मलाकी फ़िक़ह में नमाज़ में बैठने, बैठने की मात्रा के फ़र्ज़ और सुन्नत होने या न होने के बारे में बता सकते हैं?

प्रश्न विवरण


– इसके अलावा, नमाज़ में अन्य क्या नियम हैं?

उत्तर

हमारे प्रिय भाई,

मलिकी फ़िक़ह के अनुसार नमाज़ में कुछ बातों का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है:

– कुद्द/तशह्हुद के लिए बैठना और तशह्हुद पढ़ना अनिवार्य नहीं है, बल्कि सुन्नत है।

– इफ़्तिताह की तकबीर कहते समय हाथ उठाना

-अन्य संप्रदायों की तरह-

मालिकी फ़िरक़े में भी यह सुन्नत है।

– इफ़्तिताह की तकबीर ज़ोर से कहना इमाम, जमात और अकेले नमाज़ पढ़ने वाले सभी के लिए सुन्नत है।


– अनिवार्य नमाज़ों में खड़े रहते हुए हाथों को बांधना महरूम (अवांछनीय) है, सुन्नत यह है कि हाथों को बाजू में लटकाया जाए।

नफिल नमाज़ों में हाथ बांधना जायज़ है, इसमें कोई बुराई नहीं है।

– इस्तिफाह दुआ (सुब्हानका) पढ़ना महरूम (अवांछनीय) है।

– फातिहा से पहले ‘अउज़ु’ और ‘बिस्मिल्लाह’ कहना महरूक (अवांछनीय) है।

– खड़े होने के दौरान, दोनों पैरों के बीच -अत्यधिक नहीं- थोड़ी दूरी रखना सुन्नत है।

– ज़म्म-उल-सुवर (ज़्यादातर सूराएँ जो क़ुरान में एक-एक आयत की होती हैं) की शुरुआत में “बिस्मिल्लाह” कहना और पूरी सूरा पढ़ना सुन्नत है।

– सजदे में जाते समय पहले हाथ और फिर घुटने जमीन पर रखना सुन्नत है।

– पहले और आखिरी तशरीह में “तवर्रुकन बैठना” सुन्नत है।

– तशह्शूद पढ़ते समय दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे को मिलाना और बाकी तीन उंगलियों को खुला रखना सुन्नत है।

– तशह्हुद की शुरुआत से अंत तक अपनी तर्जनी (अंगूठे के बगल वाली उंगली) को दाएं-बाएं हिलाना सुन्नत है…

– आखिरी तशह्हुद में सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहना सुन्नत है।

(देखें: व. ज़ुहेली, अल-फ़िक़हुल-इस्लामी, 1/666-719)



नोट:

इस कृति का तुर्की भाषा में अनुवाद भी उपलब्ध है। आप वहां से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।


सलाम और दुआ के साथ…

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