क्या आदत के तौर पर की गई कसम के लिए प्रायश्चित्त आवश्यक है? क्या बिना सोचे-समझे “वल्लाह” कहना, जो कि बीच-बीच में हो जाता है, प्रायश्चित्त की आवश्यकता पैदा करता है? हालांकि यह ज़ुबान से कहा गया है, लेकिन दिल से नहीं…

उत्तर

हमारे प्रिय भाई,


यमीन-ए-लाग़व:

व्यर्थ और अर्थहीन शपथ। अतीत में घटित न हुई किसी घटना को घटित मानकर या वर्तमान में विद्यमान किसी वस्तु को विद्यमान न मानकर शपथ लेना, इसी वाक्य के अंतर्गत आता है।

इसे उन कसमों का नाम भी दिया गया है जो आदत बन गई हैं और जो लोग बिना सोचे-समझे बोल देते हैं।


इस तरह की कसम का कोई महत्व नहीं होता और इसके लिए प्रायश्चित की भी आवश्यकता नहीं होती।


लेकिन मुंह को खाने की आदत न लगाना, सुन्नत का पालन करना है।

(जलाल यिल्डिर्म, स्रोत सहित इस्लामी फ़िक़ह, उयसल किताबेवी: III/155)।


सलाम और दुआ के साथ…

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